जब जंगल रो पड़े: जानवरों की चीख़ बनाम हैदराबाद में IT विकास

प्रस्तावना: जब पेड़ बोले और जंगल चीखा
2025 की इस भीषण गर्मी में जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास स्थित कंचा जंगल (Kancha Forest) में पेड़ कटने लगे,
तब सिर्फ इंसान नहीं, पूरी प्रकृति चीख़ पड़ी।

जानवरों के घर उजड़ गए,
परिंदों के घोंसले गिर गए,
और मिट्टी की सांस घुटने लगी।
पर क्या किसी ने उनकी चीख़ सुनी?

पूरा विवाद – जानवरों की नज़र से
तेलंगाना सरकार ने 400 एकड़ यूनिवर्सिटी ज़मीन को IT पार्क और अन्य प्रोजेक्ट्स के लिए नीलाम करने की योजना बनाई।
इस जंगल में बसे हैं:
734 तरह के पौधे
237 प्रकार के पक्षी
हिरण, सियार, मोर, भारतीय स्टार कछुआ जैसे दुर्लभ जीव
‘मशरूम रॉक’, एक ऐतिहासिक चट्टान जो हजारों साल पुरानी है
सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इस पर स्वतः संज्ञान लेकर निर्माण कार्य पर रोक लगाई थी,
लेकिन 2025 में फिर से वही खतरा मंडरा रहा है।
“हम नहीं बोल सकते… पर क्या तुम्हें हमारी आँखें भी नहीं दिखतीं?” – जानवरों की व्यथा

पक्षियों का विलाप:
“हम उड़ना सीखते हैं,
लेकिन भागना नहीं।
जब पेड़ गिरते हैं,
हमारे घर साथ गिरते हैं।
हमारे बच्चे मलबे में दब जाते हैं –
और इंसान इसे विकास कहता है।”

हिरण की चीख़:
“हम शांत जंगल में मिलते थे,
अब हर कोई बिखरा पड़ा है।
कभी मशीन, कभी आग…
हमारा डर तुम्हें प्रगति लगता है?”

कछुए की सिसकी:
“मैंने सदियों में घर बनाया,
अब कुछ हफ्तों में सब उजड़ गया।
तुम तेज़ हो, हम धीमे –
लेकिन हम भी जीते हैं!”

मोर की टूटी बारिश:
*”मैं नाचता था…
अब बारिश आती है तो
मैं खुद को छुप
प्राकृतिक नुकसान – जो इंसान भी झेलेगा
हमारा जंगल सिर्फ जानवरों का घर नहीं था,
वो इंसानों के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच था।
अब जो नुकसान हो रहा है, उसका असर सीधा-सीधा हम सभी पर पड़ेगा:
ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी
स्थानीय जलस्रोतों का सूखना
बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं का बढ़ना
वन्यजीवों का पलायन और विलुप्ति
मिट्टी की उर्वरता में गिरावट
क्या यह सच में ‘विकास’ है, या धीरे-धीरे हो रही प्राकृतिक आत्महत्या?
विकास बनाम प्रकृति – कब रुकेगा ये संघर्ष?
सरकार का कहना है:
“ये ज़मीन विकास के लिए ज़रूरी है, IT हब बनाएंगे, रोज़गार मिलेगा।”
लेकिन क्या एक और कॉरपोरेट टावर
हमें वो हवा, वो सुकून दे पाएगा
जो ये जंगल देता था?
हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार ने साफ कहा है:
“यूनिवर्सिटी ने कभी भी यह ज़मीन छोड़ने की इजाज़त नहीं दी।”
आखिरी आवाज़ – “हमारा घर भी तुम्हारा था…”
हम जानवर हैं…
हम सरकार नहीं बदल सकते।
हम कोर्ट नहीं जा सकते।
हम ट्विटर ट्रेंड नहीं बना सकते।
हम फ़िल्मी हस्ती नहीं हैं,
जो मीडिया कवर करे।
लेकिन आप हैं।
आपको हमारी आवाज़ बनना होगा।
क्योंकि अगर आज ये जंगल उजड़ गया,
तो कल आपकी साँस भी खतरे में होगी।
आप क्या कर सकते हैं? (Call to Action)
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