हैदराबाद यूनिवर्सिटी विवाद: क्या विकास की आड़ में पर्यावरण का बलिदान हो रहा है?

हैदराबाद यूनिवर्सिटी विवाद: क्या विकास की आड़ में पर्यावरण का बलिदान हो रहा है?
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“पेड़ कट रहे हैं, जीव-जंतुओं का बसेरा उजड़ रहा है, और प्रकृति के साए में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य अंधकार में जा रहा है। क्या विकास की यह कीमत बहुत ज्यादा नहीं?”


क्या है पूरा मामला?

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास स्थित 400 एकड़ भूमि को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। तेलंगाना सरकार ने इस ज़मीन को IT पार्क और अन्य प्रोजेक्ट्स के लिए नीलाम करने का फैसला किया है। लेकिन इस फैसले ने छात्रों, पर्यावरणविदों, न्यायपालिका, और विपक्षी पार्टियों को सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया है।

यह क्षेत्र सिर्फ एक ज़मीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि 734 प्रजातियों के पौधों, 237 प्रकार के पक्षियों, दुर्लभ जीवों (जैसे भारतीय स्टार कछुआ), मोर और चीतलों का प्राकृतिक आश्रय स्थल है। यहां स्थित ‘मशरूम रॉक’ जैसी प्राचीन संरचनाएँ भी इस बर्बादी की चपेट में आ सकती हैं।

जब भारी मशीनों से पेड़ों की कटाई और ज़मीन समतल करने का काम शुरू हुआ, तो छात्रों और पर्यावरणविदों ने आवाज उठाई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया और तुरंत सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी।


छात्रों और पर्यावरणविदों की भावनाएँ

छात्रसंघ अध्यक्ष उमेश अंबेडकर ने कहा:
“यह सिर्फ एक जंगल नहीं है, बल्कि यह हमारी सांसों का हिस्सा है। सरकार इस अकादमिक स्थल की आत्मा को कुचल रही है।”

पर्यावरणविद् अरुण वासिरेड्डी और श्रीराम रेड्डी द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि “यह क्षेत्र न केवल जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि जलस्रोतों को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाता है।”

फिल्म इंडस्ट्री से भी समर्थन मिला है—

  • रश्मिका मंदाना ने इंस्टाग्राम पर लिखा, “मैंने अभी यह देखा… दिल टूट गया। यह सही नहीं है!”
  • दिया मिर्जा ने कहा, “विकास की कीमत पर प्रकृति का विनाश अस्वीकार्य है।”

राजनीतिक घमासान

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी की सरकार को इस फैसले के लिए कड़ी आलोचना झेलनी पड़ रही है।

  • BRS नेता केटी रामाराव (KTR) ने धमकी दी है कि अगर यह ज़मीन किसी को बेची गई तो 2028 में सत्ता में लौटते ही इसे वापस ले लिया जाएगा और इसे एक विशाल इको-पार्क में बदला जाएगा।
  • BJP सांसद के लक्ष्मण ने केंद्र सरकार से दखल देने की मांग की है।
  • ABVP के नेताओं ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को ज्ञापन सौंपकर तुरंत हस्तक्षेप की मांग की।

सरकार का पक्ष

तेलंगाना सरकार के अनुसार—

  • यह ज़मीन सरकारी ‘पोरोम्बोक’ (बेकार ज़मीन) श्रेणी में आती है, न कि जंगल की श्रेणी में।
  • 2004 में यूनिवर्सिटी से ली गई थी, और इसके बदले गोपानपल्ली में 397 एकड़ ज़मीन दी गई थी।
  • सरकार का दावा है कि यहां कोई झील या पर्यावरणीय नुकसान नहीं होगा।
  • IT हब और अन्य विकास कार्यों के लिए यह ज़मीन ज़रूरी है।

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हालांकि, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार देवेश निगम ने इन दावों को पूरी तरह गलत बताया है और कहा कि “ऐसी कोई सर्वे नहीं हुई, जिसमें यूनिवर्सिटी ने अपनी ज़मीन छोड़ने की बात मानी हो।”


क्या होगा आगे?

अब यह मामला न सिर्फ छात्रों और सरकार के बीच टकराव का मुद्दा बन गया है, बल्कि देशभर में “विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण” की बड़ी बहस को जन्म दे चुका है।
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👉 क्या IT पार्क और कॉरपोरेट टावरों के लिए 400 एकड़ जंगल का विनाश जायज़ है?
👉 क्या सुप्रीम कोर्ट इस ज़मीन को हमेशा के लिए संरक्षित करने का आदेश देगी?

आपका क्या सोचना है? क्या विकास के नाम पर प्रकृति को नष्ट करना सही है?
अपनी राय कमेंट में ज़रूर दें!

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